शनिवार, 16 जुलाई 2016

ज़रा-सी दोस्ती

एक अच्छे राँग नम्बर से शुरू हुई दोस्ती थी। धीरे-धीरे बढ़ती गई। बातें भी, दोस्ती भी। जब वह ज्यादा खुश होती तो कहती –“ बाबू! यू आर माय बेस्ट फ्रेंड!”और मैं घबरा कर पूछ बैठता – “सच में?”
मैं भी किसी का बेस्ट फ्रेंड हो सकता हूँ – सुनकर संतोष होता। ऐसा इसलिए कि मेरे हिसाब से बेस्ट फ्रेंड वाली खूबियाँ मुझमें नहीं के बराबर थीं। फिर मुझे लगता कि कहीं यह अति-उत्साह में कही जाने वाली बात तो नहीं? मैं तस्दीक करता-“यार! कभी भूल तो नहीं जाओगे!”
और वह कहती-“नहीं डियर! तुम्हारे जैसा सच्चा फ्रेंड कहाँ मिलेगा? आय विल बी विथ यू… फॉरएवर.. एण्ड एवर..!
कभी वह मेरे बारे में पुछती तो मैं कहता – न तो ज्यादा स्मार्ट, न ही गुड लूकिंग हूँ…
बीच में बोल पड़ती वह-“सो व्हाट बाबू? यू हैव ए स्वीट हर्ट इनसाइड यू। प्लीज रीमेन विथ मी, ऑलवेज.. एण्ड डोन्ट एवर डेयर फॉरगेट मी or आय विल किल यू..!”
“मैं कभी रिश्ते नहीं तोड़ता डियर.. चाहे वह फ्रेंडशिप ही क्यों न हो”-हंसते हुए मैं कहता.. अमूमन बात यहीं पर खत्म हो जाती। फिर उसने जिद की मिलने की। पर मैं नहीं चाहता था मिलना। एक डर था कि कहीं वह मुझसे दूर न हो जाए। उसकी दोस्ती मुझे प्यारी थी। पर उसकी जिद के आगे मेरी एक न चली। मेरा डर सही निकला और उसकी बातें झूठीं। धीरे-धीरे वह मुझसे दूर हो गई।
मैं उस समय भी सही था जब उसकी अपनापन वाली बातों से डरता था। आज भी सही हूँ जब याद करता हूँ उसकी कही बात – “डोन्ट एवर डेयर टू फॉरगेट मी or आय विल किल यू।“
“आय स्टिल डोन्ट डेयर टू फॉरगेट यू डियर फ्रेंड.. बट व्हाट अबाउट यू।“-अगर कभी मिलना हुआ दोबारा तो जरूर पूछूँगा।




चित्र : desicomment.com से साभार

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