रविवार, 3 जुलाई 2016

पलाश के फूल

*पलाश के फूल *

शाम का समय समुद्री तट की जवानी का समय होता है। लहरों की पागल कर देने वाली चाल और उनकी ताल पर नाचते लोगों के मन। इनके बीच जहाँ – तहाँ पलाश के फूल जैसे दूर से ही दृष्टिगोचर होती जोड़ियाँ। रोहन के लिए यह समझ पाना मुश्किल होता था कि इतने लोगों की भीड़ और बेचैन लहरों के शोर में आखिर ये प्रेमी जोड़े इतना एकाग्र कैसे रह लेते हैं।
हमेशा की तरह टहलते हुए वह भीड़ भाड़ से अलग चट्टानों की संगत में बैठा था। इनके बीच बैठना उसे सुकून देता था। अनंत से चलकर लहरें आतीं और उन शिला-खंडों को चूमती हुई वापस लौट जातीं। सदियों से चलता यह सिलसिला रोहन को अनुभूति से भर जाता। लहरों और शिलाओं का यह प्रणय-प्रलाप उसके मन को बहुत भाता था।

दो निर्जीव आयामों का यह सजीव कलह अक्सर वह अकेला ही देखा करता। उस दिन भी वह खोया था लहरों के खेल में। आँखें दुनिया के उस ठुकराये हुए सुनसान का लुत्फ उठा रही थीं। अचानक से आँखों ने संशय को महसूस किया। दिमागी राडार में भी कुछ संकेत मिले। स्व-निर्देशित सी पुतलियाँ एक निश्चित दिशा में मुड़ गईं। आँखों ने थोड़ी दूरी पर एक आकृति के उभरने का संकेत दिया। और फिर पानी से एक आवाज आयी.. असामान्य-सी। कुछ गिरने की। उत्सुकतावश बढ़ गया आवाज की दिशा में। पास जाने से उसने जो देखा वह काफी था उसके होश उड़ाने को।
पानी की गहराई में एक धुंधली-सी आकृति डूबती उभरती थी।
किसी की जान खतरे में है।
रोहन विचलित हो उठा। पानी के जोड़ – घटाव में उलझने का समय भी नहीं था न ही आसपास कोई मनुष्य जिसे वह बुलाता मदद को। जल के लहराते शोर में उसकी आवाज का वहाँ तक जाना नामुमकिन था जहाँ लोग लहरों का उत्सव देखते खड़े थे। “कोई डूब रहा है.. “-वह जैसे सोते से जागा।
“नहीं, उसे बचाना ही होगा। “
उसने पानी में छलांग लगा दिया।

उसने अपने गांव की नदी में तैरना सीखा था कुछ साल पहले। परन्तु नदी और समुद्र के पानी में भी फ़र्क होता है और दोनों की परिस्थितियों में भी। समुद्र की कोई थाह नहीं होती न ही इसकी लहरों का कोई भरोसा। उसकी नसों में सिहरन सी दौड़ गयी। उसने डर को काबू में किया और लहरों के क्रोध से खुद को बचाते हुए आगे बढ़ता गया। कुछ उसकी किस्मत अच्छी थी और कुछ समन्दर का मिज़ाज़। किनारे की तरफ आती बड़ी – सी एक लहर ने डूबने और बचाने वाले की बीच की दूरी कम कर दी। रोहन के हौसले को उम्मीद मिली। उसने पूरा जोर लगा दिया। वह जानता था कि वक्त बहुत कम है और अगर वह चूका तो उसे बचाना असंभव हो जाएगा।
वह एक लड़की जान पड़ती थी। शुक्र था कि वह होश में थी। रोहन ने अपनी उखड़ती सांसों को किसी तरह थामे रखा। किनारा थोड़ा दूर सही मगर मकसद तो मिल गया था। एक जिंदगी का सवाल था। उसने अपना धैर्य नहीं खोया। एक हाथ से लड़की को खींचते और दूसरे से लहरों को काटते वह किनारे पर पहुँच ही गया। पानी का प्रभाव कहें या कुछ और लड़की को उल्टी हुई और वह बेजान सी लेट गयी।

थोड़ी देर बाद उसने आँखें खोली। उसे विश्वास नहीं हुआ कि वह जीवित है जबकि कुछेक मिनटों पहले वह मौत की सेज पर सोने चली थी। उसने फिर से आँखें बंद कर ली।
जान तो रोहन की भी निकली जा रही थी। आज तक उसने पानी का ऐसा रूप नहीं देखा था।
थोड़ा समय बीता और उसने आँखे खोली। रोहन की तरफ नजर गयी फिर झूक गयी। शर्मिंदगी से भरा चेहरा उठाया न जा रहा था। कुछेक बोलना चाह रही थी पर शब्द ठहर से गए थे भीतर ही कहीं। रोहन से उसकी हालत छुपी न रह सकी। उसने लड़की जो कि बीस के आसपास की होगी के सिर पर हाथ रखा स्नेह से-“ क्या मैं इस सुन्दर से चेहरे का नाम जान सकता हूँ? और हाँ तुम्हें यह बताने की जरूरत नहीं कि तुमने ऐसा क्यों किया। दुनिया को अलविदा कोई शौक से नहीं करना चाहता यह मैं जानता हूँ। वैसे मेरा नाम रोहन है।
“सोनम.. “
उसकी आवाज में जैसे खनक थी।
“बहुत प्यारा नाम है”। रोहन ने मुस्करा कर कहा।
“मसखरी न करो, बस नाम ही तो है, इसमें प्यारा क्या है! “वैसे भी लड़कियों की कौन सी बात गलत लगती है जो नाम गलत लगेगा। “

अरे यार, अजीब लड़की हो! जरा चैन तो ले लो। अभी-अभी लहरों से छूटकर आयी हो। कुछ शुक्रिया तो करती जाओ। उनका ही, मेरा न भी करो तो कोई बात नहीं। वैसे सच कहा तुमने सोनम कोई नाम है भला! नाम होना चाहिए था – सोनमती, फूलमती या पारवती…रोहन ने मुँह बनाते हुए कहा।

रोहन को मुँह बनाते देखकर उसकी हँसी छूट गयी।
हँसी के पीछे एक पतली-सी लकीर भी खींच गयी थी, दुख और बेबसी की। रोहन ने देखा – उसकी आँखों के किनारे एक जोड़ी धारा बह चली थी।
क्या वजह हो सकती है – रोहन ने सोचा।
प्रत्यक्ष में सोनम से कहा – चाहो तो जोर से रो लो, ऐसा कि आंसूओं से समन्दर का पानी भी मीठा होता जाए।
आँसू मीठे नहीं होते।
सबके कहाँ होते हैं पर तुम्हारी बात जरा अलग है।
सोनम मुस्कुराने पर मजबूर हो गयी थी।

रोहन की बातें अजनबीपन के दायरे से बाहर की थीं। एक तो अपनी जान पर खेलकर उसने सोनम की जान बचायी ऊपर से ऐसी प्यारी बातें, किसका मन नहीं फिर पिघलेगा। वैसे भी अच्छे लोगों का साथ दुख कम कर जाता है, अगर खत्म न भी करे तो। “यह सच है रोहन कि कुछ देर पहले मैंने अपनी तरफ से दुनिया को अलविदा कह दिया था। इस सुनसान का सहारा मैंने यही सोच कर लिया था। पता नहीं ऐसा क्यों हुआ कि जब जिंदगी खत्म लग रही थी तो मन में पहला खयाल यही आया कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह मन की पुकार थी या कुछ और, लेकिन इस अंधेरे में भी अगर जीवन का उजाला मैं देख पा रही हूँ तो सिर्फ़ तुम्हारी वज़ह से। यह अहसान ताउम्र रहेगा मुझपर। हर पुजा में तुम्हारी जिंदगी के लिए मन्नतें करूँगी।“

 रोहन देख रहा था। डबडबायी आँखें ज्यादा नहीं बोल पाएँगी अब। सोनम अब कुछ सामान्य दीख रही थी।

उसने कहा – “सोनम! मैंने वही किया जो एक आदमी ऐसी सिचुएशन में करता है। तुम्हारे हिस्से में अभी जीना बाकी लिखा है। तुम्हें यह हक़ नहीं होना चाहिए कि इसे नुकसान पहुंचाओ। वैसे बातों से तुम खुद समझदार हो। बुरा मत मानना, तुम्हारी मनोदशा अभी ठीक नहीं है। मेरे परिचय के एक डॉक्टर हैं तुम्हें एक बार उनसे मिल लेना चाहिए।“
इसकी जरूरत नहीं है रोहन.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ। वह एक आवेश था जिसमें मैंने ऐसा कदम उठाया बाक़ी नथिंग इज सीरियस.. मेरा विश्वास करो।

उसने बताया कि वह अपनी एक सहेली के साथ रहती है पेइंग-गेस्ट में। शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से एम. बी. ए  कर रही है। रोहन ने आग्रह कर उसे उसके पी. जी. तक छोड़ दिया। न तो सोनम ने न ही रोहन ने इस घटना के बारे में उसकी सहेली, प्रेरणा को कुछ बताया।

महानगर की व्यस्तता इसकी प्रकृति पर गहरा असर डालती है। यहाँ लोग मिलते हैं, कुछ कदम चलते हैं, आगे बढ़ जाते हैं। बहुत कम मुलाकातें अपनापन के रिश्तों तक पहुंच पाते हैं। प्रारंभ के कुछ दिनों तक रोहन उसका हाल – चाल पूछ लेता था। मगर सोनम ने अपनी तरफ से कभी कॉल नहीं किया था। व्यस्त दिनचर्या में रोहन भी इस बात को भूल ही चुका था। उधर सोनम ने भी कभी रोहन की ख़बर नहीं ली। हाँ, उस बीच पर उसका आना-जाना लगा रहता था।

इस घटना को दो साल हो चुके थे।
एक दिन वह टेलीविजन के सामने बैठा चैनलों के मकड़जाल में खोया था। कोई भी चैनल पर नजर टिक नहीं पाती थी। “ये चैनल भी आजकल बोर करने लगे हैं.. “ वह भुनभुना उठा। वह टेलीविजन बंद करने ही जा रहा था कि अचानक एक समाचार चैनल पर उसकी नज़र ठहर गयी। तस्वीरों में एक युवती विक्षिप्तावस्था में दिख रही थी। पुलिसकर्मियों से हाथापाई करती उस युवती पर नजर पड़ी तो सहसा चौंक पड़ा रोहन।
सोनम..!
एक डॉक्टर होने के नाते उसे समझते देर नहीं लगी कि सोनम गहरे अवसाद से पीड़ित थी। वह समझ सकता था कि क्यों कभी सोनम ने उससे संपर्क नहीं की। उससे और इंतजार न हो सका।
रास्ते भर सोनम का प्यारा चेहरा उसे याद आ रहा था। उसकी बातें ताज़ी हो रही थी। उसे स्वयं पर गुस्सा भी आ रहा था कि एक मनोचिकित्सक होने के बाद भी उसने सोनम को जाने दिया अवसाद के घने जंगल में भटकने के लिए। पर वह कर भी क्या सकता था। एक अंजान सी लड़की को वह जोर जबरदस्ती रोक भी तो नहीं सकता था। उसे अफसोस हुआ कि क्यों नहीं उसने बीच में कोई ख़बर ली।
पर वह उसकी कौन थी जो ख़बर लेता।
दोस्त! – नहीं।
परिचित! – नहीं।
रिश्ते में भी नहीं। फिर किस हैसियत से वह जाता उससे मिलने। जबकि उसे कुछ पता भी तो नहीं था। उसके बारे में, उसकी  जिंदगी के बारे में।
तो अब क्या हुआ? आज भी तो वही बातें हैं, वहीं परिस्थितियाँ हैं – उसने सोचा।
नहीं आज उसे मेरी जरूरत है, एक दोस्त के रूप में भी एक डॉक्टर के रूप में तो ख़ैर है ही।

पुलिस स्टेशन में जब उसने गाड़ी रोकी तो परिसर मीडियाकर्मियों से खचाखच भरा था। उसने मन ही मन उनका धन्यवाद किया। चाहे बाजार के हिस्से के लिए ही सही इन ख़बरों को चलाने का कुछ मकसद तो पूरा हो ही जाता है।
उसने पुलिस को अपना परिचय दिया। संक्षेप में उसने दो साल पहले का वह वाक्या भी बता दिया। पुलिस के अनुसार मदहोशी की हालत में रेलवे स्टेशन से उसे लाया गया था। उसे निकटवर्ती अस्पताल में अभी भर्ती कराया गया था।
उसने सोनम के होश में आने का इन्तज़ार नहीं किया। सारी कागज़ी कार्रवाई वह पहले ही पूरी कर चुका था।

कुछ देर बाद सोनम ने आँखे खोली तो अपने को एक अस्पताल के कमरे में पाकर चौंक गयी। कमरे के वातावरण और उसके रखरखाव से वह समझ गयी कि वह कोई प्राइवेट अस्पताल के कमरे में है। थोड़ी देर में दरवाजा खुला और रोहन ने कमरे में प्रवेश किया।
अ. रे.. ! रो.. ह.. न.. तु.. म.. बड़ी मुश्किल से वह बोल पायी।
हाँ मैं! शुक्र है कि तुमने पहचाना।
सोनम ने नज़रें झूका ली।
“और यह सब क्या है सोनम? तुमसे पहली बार मिला था तो मुझे तुमपर दया आयी थी पर इस बार मुझे गुस्सा आता है.. “
“एक प्रतिष्ठित कॉलेज की स्टूडेंट और देखने में सुलझी हुई लड़की की ऐसी हरकत.. सोचने में भी शर्म आती है.. “
सर!!
पीछे से नर्स की आवाज आयी।
क्या है? – भन्नाते हुए कहा रोहन ने।
सर, सी इज सीक नाओ.. सी निड्स योर सिम्पथी सर!
आय एम सॉरी.. मैं.. कुछ पल के लिए मैं भूल ही गया था।
उसने स्वयं को नियंत्रित किया।

सोनम से मुखातिब होते हुए उसने कहा – माफ़ करना सोनम, मैं जरा ज्यादा बोल गया। पर एक डॉक्टर के नाते इस बार मुझे सारी बात सुननी है तुम्हारे मुँह से। तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊँगा। और हाँ, इस बार मेरी मर्ज़ी चलेगी।
उसने सारी रिपोर्ट्स चेक की, ब्लड में अल्कोहल और कुछ ड्रग्स की मात्रा थी।
उसने नर्स को जरूरी हिदायत दी। सोनम को उसके घर का पता और फोन नंबर देने को बोलकर वह चला गया।

कमरे में सिर्फ़ नर्स और सोनम थे। नर्स ने मुस्कराते हुए कहा – इनकी बातों का बुरा मत मानना, गुस्से में पता नहीं क्या – क्या बोल दिया.. वैसे दिल के बहुत अच्छे हैं।
नहीं सिस्टर ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम हैं जो दूसरों की परवाह करते हैं। इनका मुझपर पहले से ही बहुत अहसान है। पता नहीं हर बार इनको ही तकलीफ देने मैं कहाँ से आ जाती हूँ।
उसने पर्ची पर अपने घर का पता और फोन नंबर लिखकर बढ़ा दिया।

दो दिनों बाद सोनम की हालत काफी हद तक अच्छी हो गयी थी। रोहन ने उसके घरवालों को फोन कर दिया था। पर अभी तक कोई नहीं आया था। उसे अकेले छोड़ना भी सही नहीं होता। कुछ सोचते हुए उसने सोनम से कहा – “जब तक तुम्हारे घरवाले नहीं आ जाते, तुम कुछ दिन मेरे घर में ही रूक जाओ.. तुम्हारी तबीयत भी तब तक ठीक हो जाएगी और मन भी लगा रहेगा। घर में मेरी माँ है उसे भी अच्छा लगेगा तुमसे बात करके।
सोनम को रोना आ रहा था। रोहन का अहसान उससे उठाया नहीं जा रहा था। मगर मज़बूरी थी, कहाँ जाती। और फिर इस बार उसमें हिम्मत नहीं हुई मना करने की।

रास्ते में रोहन के आग्रह पर उसने बताना शुरु किया…
वह एक संपन्न परिवार की इकलौती बेटी थी। घर में सुख सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। सब कुछ हंसी खुशी चल रहा था कि किस्मत की नजर लग गयी। एक दिन उसके पिता काम के सिलसिले में बाहर गए तो फिर उनका मृत शरीर ही वापस आया। दिल के दौरे से उनकी असमय मौत हो गई। तब वह बारह साल की थी। घर में विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था। हर समय मंडराने वाले रिश्तेदारों और परिचितों ने धीरे-धीरे आँखें फेर ली। यहाँ तक कि उसके रिश्ते के एक चाचा ने जमीन – जायदाद के लिए पापा के कुछ दुश्मनों से मिल कर षड्यंत्र करना भी शुरू कर दिया था। 

रोहन हतप्रभ होकर सुन रहा था। सोनम का दर्द उसे गहरे तक झकझोर रहा था। 

सोनम बोलती रही-"पापा के प्रभाव से शुरू-शुरू में तो गांव के अच्छे लोगों ने हमारी मदद की, लेकिन सब को अपना हित पहले देखना होता है- दूसरों के लिए कोई कब तक लड़ेगा। उनकी ज्यादतियों से उबकर माँ ने मुझे बाहर पढ़ने भेज दिया।"

"पता है रोहन! यह दुनिया उतनी बुरी नहीं है जितना इसमें रहने वाले कुछ लोग इसे बना देते हैं। पार्क में, बाज़ार में, बस स्टैंड में या रेलवे स्टेशन में, लोगों का हुजूम मिल जाता है। एक निकल जाए तो चार और आ जाते हैं उस रिक्तता को भरने। पर एक आदमी के चले जाने के बाद जो खालीपन उसके बाद जिंदगी में आता है उसे भरने के लिए कोई क्यों नहीं आ पाता? आना तो दूर लोग उसे और बढ़ा देते हैं।"
अचानक से शांति छा गई थी। ड्राइविंग सीट पर बैठे रोहन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें। सोनम की बात शत-प्रतिशत सही थी। वह भी खामोश हो गया।

"खैर, समय ज़ख्म देता है तो दवा भी दे जाता है," - सोनम ने कहना शुरू किया।
"मैंने अपने पढ़ाई पर ध्यान लगा दिया। मेहनत रंग लाई और एक दिन मेरा चयन देश के जाने माने बिजनेस कॉलेज में हो गया। लेकिन मेरा पढ़ाई में अव्वल आना भी उन्हें अखरने लगा। वे मेरी शादी किसी कम पढ़े-लिखे से करवाने का दबाव देने लगे और नहीं करने पर भयानक अंजाम भुगतने की धमकी भी। माँ ने मना कर दिया। बदले की आग में उन्होंने हमारी फसलें बर्बाद कर दी। उनके डर से कोई हमारे खेतों में फसल लगाने को तैयार नहीं होता। तरह-तरह के अफवाह फैलाना शुरू कर दिया मेरे और माँ के बारे में। मेरी तस्वीर को अश्लील तस्वीरों में मिलाकर लोगों में फैला दिया.."सोनम का दर्द उभर आया था.. रोते – रोते कहा उसने-कोई कितना सहे रोहन.. धैर्य ने साथ छोड़ दिया था। कोई अपना था नहीं जिससे बाँट लेता अपना दर्द। और फिर एक अकेली लड़की का दर्द उसकी कमजोर नस भी होती है। इसी अवसाद में मैंने पिछली बार जान देने की कोशिश की थी।

रोहन का चेहरा पश्चाताप से भर उठा। पता नहीं वह क्या – क्या समझ रहा था सोनम के बारे में। आज उसके मन में सोनम के लिए बेइंतहा इज्जत जमा होती जा रही थी।
सॉरी सोनम..! पता नहीं मैंने क्या – क्या कह दिया तुम्हे, बिना तुम्हे जाने हुए।
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं रोहन। इस स्थिति में जो भी होता यही समझता।

"पता है रोहन.. उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि चाहे जो हो मैं हारूँगी नहीं। कोई भी विपरीत स्थिति में मैं सोचती तुम्हारे बारे में। कोई दूसरे के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देता है और मैं स्वयं का जीवन भी नहीं संभाल सकती।"

"एक बार फिर मेरी जिंदगी वापस पटरी पर लौट आयी थी।
एक महीना पहले की बात होगी जब एम. . बी. ए का फाइनल एक्जाम होने वाला था। पढ़ाई का प्रेशर भी ज्यादा हो चला था। सर भारी-भारी सा रहता और आँखों में भी तकलीफ होनी शुरू हो गई थी।
एक दिन प्रेरणा ने एक दवा लाकर दी। मैंने खाया तो थोड़ा आराम मिला। सर भी हल्का रहने लगा। नींद भी कम आती। मैं खुश थी कि परीक्षा की तैयारी अच्छे से हो रही है। मेरा ध्यान अपने पर कम पढा़ई में ज्यादा थी। खैर परीक्षा समाप्त हुई। मैं खुश थी। पर ज्यादा दिनों तक नहीं रह पायी। एक दिन अचानक बेचैनी सी होने लगी। ऐसा लगता था जैसे शरीर अकड़ जाएगा। लगता था कुछ छूट रहा है। कुछ चाहिए पर पता नहीं क्या था वह। फिर पता नहीं प्रेरणा ने कौन सी दवा दी कि सब शांत हो गया। फिर तो हर दिन मैं यह दवा लेने लगी।"

"तीन दिन पहले जब मैंने प्रेरणा से वही दवा मांगी तो वह कहने लगी कि दवा ख़त्म हो गई है। उसने बताया कि वह दवा एक ख़ास दुकान पर ही मिलती है क्योंकि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से बनकर वहीं तैयार होती है। मरती क्या न करती मैं तैयार हो गयी। वहाँ जाने से पहले प्रेरणा ने मुझे कुछ खाने को दिया यह कह कर कि इससे कुछ राहत मिलेगी। जिस दुकान पर मैं गयी थी दवा के असर से मुझे ठीक-ठाक याद नहीं पर कोई बेसमेंट जैसी जगह थी। वहीं उन्होंने मुझे एक दवा दी पीने को। दवा ने पता नहीं कैसी असर दिखाई कि चक्कर- सा आने लगा। मैंने प्रेरणा को बुलाया पर वो उधर नहीं थी, उसके बदले दो आदमी आये जिनसे शराब की बू आ रही थी। मैंने थोड़ा संयमित किया खुद को, हालाँकि यह बहुत मुश्किल था। मैंने देखा वहाँ एक आदमी कैमरे के साथ खड़ा था। मेरा तो ख़ून सूख चुका था। मुझे वह क्षण मृत्यु से भी बदतर लग रहा था। अचानक मैंने अपने में एक ताक़त महसूस किया – चाहे जो हो जाए मुझे जीते-जी नहीं मरना। मैंने जमीन पर पड़ी एक कठोर चीज उठाई और उनमें से एक के सर पर दे मारी। उन्हें मेरे इस प्रतिकार की आशा नहीं थी। अचानक हुए हमले से वे जब तक संभलते तब तक मैं बेसमेंट की ओर दौड़ लगा चुकी थी। फिर मैंने मुड़कर नहीं देखा जिधर राह देखी, भागती गई। जब आँख खुली तो तुम्हारे पास पायी अपने-आप को।"

"ओ माय गॉड… इतना सब हो गया और मुझे कुछ भी पता नहीं! काश! कि तुम एक बार भी मुझे बता देती।" - रोहन तड़प उठा था।

"रोहन! मैं तुम्हें अपनी मुसीबत नहीं देना चाहती थी। तुम्हारी अपनी दुनिया है, अपने लोग हैं, किस मुँह से कहती। "

" क्या अपनी दुनिया में एक सच्चे दोस्त की कोई जगह नहीं होती सोनम? मैं तो इस भ्रम में तुमसे बेफ़िक्र रहा कि तुम जहाँ भी थे, खुश थे। एक बार तो आजमाया होता। "
" रोहन.. ऐसे अफसोस न करो.. प्लीज… मैं पहले ही शर्मिन्दा हूँ। तुमने पहले ही मुझपर कितने उपकार किए हैं। आगे से ऐसी गलती फिर न करूँगी।"
रोहन ने देखा सोनम की आँखों में सच्चाई के आँसू झिलमिल हो रहे थे।
रोहन मन- ही- मन सोच रहा था – सोनम यह आँसू अब सिर्फ़ तुम्हारे नहीं रहे, इसमें मेरी भी आभा मिल गयी है अब।
सोनम की तरफ़ देखते रोहन की आँखों में सपनों के दो सफ़ेद हंस तैरने लगे थे।
पुलिस तहकीकात में पता चला कि प्रेरणा को सोनम के चाचा ने पैसों का लालच देकर सोनम को ड्रग्स का आदी बनाने के लिए राजी किया था। जिससे वह सोनम की जायदाद पर कब्जा कर सके। उसकी मंशा तो पूरी न हो सकी। बदले में दोनों जेल पहुँच गए।
रोहन का समुद्र – तट का पसंदीदा जगह अब सुनसान नहीं रहा। वहाँ अब सोनम भी रहती है शाम के साथ-साथ। पलाश के फूलों जैसे दूर से दिख जाने वाले प्रेमी – जोड़ो में एक नाम और जुड़ गया था।
रोहन और सोनम का।












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