रविवार, 22 जनवरी 2017

रासबिहारी की 'पाती'

असितनयने!
आज अपने चिर-परिचित और सदा-प्रतिक्षित कार्टून शो ‘डोरेमॉन ‘को देखते हुए फिर सुजूका से सामना हुआ. और फिर वही विचार मेरे मन के मरूस्थल में कस्तूरी ढूँढ़ते मृग-सी बदहवास भागी जा रही है।मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी बातें रूई के फाहों जितनी हल्की लगती होंगी, लेकिन हे अविश्वासिनी! रूई भी जब पानी से भींग जाती है तो उसमें वज़न आ जाता है… मेरी ज़िन्दगी की खाली थाली के फूली हुई रोटी! तुम भी मेरे दिल से निकली हुई बातों को अपने विश्वास के पावन जल से भींगोकर उसे भारी कर दो।
हाँ तो मेरी कंठलग्ना!
कितना अच्छा होता कि तुम भी डोरेमॉन की सुज़ुका होती, उतनी ही छोटी रहती हरदम, उतनी ही प्यारी और रहती उतनी ही मीठी तुम्हारी बोली, बग़ैर किसी भीतरी कड़वाहट के। मैं भी किसी छोटे बच्चे-सा बैठा देखता रहता तुम्हारा एडवेंचर, कभी विहसता कभी खिलखिला उठता, पर मन को थकने नहीं देता तुम्हें देखते हुए।
मेरी दीर्घयामा!
सुज़ुका के जैसी न तो तुम कोई कार्टून कैरेक्टर हो और न ही अजर-अमर, मगर तुम्हारे सफ़ेद हो चुके बालों और झुर्रीदार चेहरे के साथ लिपटी तुम्हारी शरारत को भी मैं उसी छोटे बच्चे-सा देखता रहूँगा, उतनी ही तन्मयता से, उतनी ही व्यग्रता से और इसी विश्वास के साथ कि जब अगली बार बैठूँगा तुम्हें देखने तो तुम बिल्कुल वैसी ही रहोगी, वैसे ही रहेंगे तुम्हारे रेशम-से बाल, वैसी ही रहेगी कुरकुरी तुम्हारी आवाज़ और कैडबरी मिल्क के माफ़िक वैसी ही रहेगी मीठी तुम्हारी मुस्कान।
हे मेरी प्रेम-प्रतिक्षा! मेरी कड़ी-परीक्षा! मेरे पूजा की जलती बाती!
मेरे हृदय के गहरे तल में न जाने कहाँ से भरोसे की इतनी तीव्र ज्योति जली जाती है कि मुझे लगता है कि अगरबत्ती की पवित्र गंध की तरह तुम भी आकर बस जाओगे मेरे मन के एकमात्र कमरे में। कि तुम्हारी कोमल पवित्रता से शुद्ध होती रहेगी मेरी भी आत्मा। कि मिलावटी इस ज़िन्दगी में बची रहेगी शुद्धता तुम्हारी उज्ज्वल उपस्थिति की।
प्रेमाधीन,
तुम्हारा ही अपना
बेचारा और अकेला
रासबिहारी

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

दौड़

बस एक तस्वीर बनकर फ्रेम हो जाने जितनी हस्ती लिए यह ज़िन्दगी जीते-जी हमसे क्या – क्या नहीं करवा जाती. ख़ुद पीछे रहकर हमें दौड़ा देती है आगे. स्टार्टिंग लाईन पर खड़े सीटी बजाते रेफ़री-सा. और हम, बस दौड़ते रहते हैं एक फिनिशिंग लाईन को पार करते हुए अगले राउंड की तरफ़. बस दौड़ते..
उस दौड़ में ज़िन्दगी से टूटकर अलग गिरते क्षणों की झंकार कहीं दब जाती है, हमारे ख़ुद के क़दमों की धमक में. कुछ और पाने की लालसा फ़्लैशलाईट-सी चमकती है मन के सामने. और इसकी चकाचौंध में हम इतने खो जाते हैं कि गुजर रहे खूबसूरत लम्हों का मेडल लेना भी भूल जाते हैं.