गुरुवार, 25 मई 2017

माई डियर डायरी

पसीने से नहायी हुई शाम के पास अब अपनी निचुड़न के अलावा कुछ भी नहीं है ऐसा, जिसे वह दिन का दिया हुआ उपहार समझ कर रख सके.

उसने सूरज से माँगी थी ज़रा सी मोहलत, कि वह देखना चाहती थी किसी को उस अगले मोड़ तक ओझल होते हुए. वह इस संतोष के साथ जीना चाहती थी कि उसने आख़िरी लम्हों तक किसी को अपनी नज़रों में रखा था – वादे के मुताबिक़. लेकिन उस बुरे दिन में दोनों ने उसे अनसुना कर दिया.

कुछ बोलना चाहते थे दोनों. पर चुप रहने में भी कुछ बुरा नहीं अगर ढ़ंग से चुप रहा जाए- ऐसा दोनों ने एक साथ सोचा. और फिर दोनों ने एक – दूसरे को अलविदा भी बंद होठों से ही किया. जैसे कि कोई शब्द फिसल न जाए ग़लती से भी..

उसने एक तस्वीर चाहा था. उसे लगता था कि तस्वीरें हमेशा ख़ुशनुमा बनाए रखेगी उसका मिज़ाज. उसे नहीं था पता कि तस्वीरें भी तभी तक प्यारी होती हैं जब तक उसमें प्यार भरने वाला हो मौज़ूद.
और एक दिन बेबसी में सारी तस्वीरें उसने बाहर कर दी सेव की हुई हर फोल्डर से. निर्जीव प्रेम की धूप तस्वीरों की जीवंतता मिटा देती हैं – उसने अपनी डायरी में दर्ज़ किया था किसी अंज़ाने दिन में.



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