कहानियाँ सिर्फ शब्दों का व्यवसाय नहीं बल्कि एहसासों को कागज़ पर उतारने का भी नाम है..और इस तरह जिंदगी को एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश भी..
मंगलवार, 23 मई 2017
माय डियर डायरी
आंखों के आगे रौशनी का भारीपन बढ़ता जाता है जबकि रात के गाढ़े अंधेरे एक- एक करके उजले होते जाते हैं. जैसे कि चला आ रहा हो कोई मलिन-सी दीवार को रौशनी से पोतता हुआ.
सपने जो एक-दूसरे से गड्डमड्ड होते रहे थे सारी रात, अब धीरे-धीरे जागृति के रेत कणों में समा चुके हैं. इधर पलकें अब सह नहीं पातीं रौशनी का बढ़ता दबदबा और नींद की वह दीवार भरभरा कर बिखर जाती है.
‘सुबह भी एक अत्याचार है’- मन थोड़ा और सोना चाहता है.
सामने दीवारों पर धूप लिपती जा रही है. पंखे की गर्म हवा नींद और रात दोनों को बचा पाने में विफल है पर समय के साथ दौड़ता जाता है एक हाँफ़ की तरह.
एक चिड़ियाँ जो अभी और चाहती थी चहकते रहना पिछली रात, लेकिन बढ़ते अंधेरे के आगे चुप होना पड़ा उसे, अभी तक अपने ठंडे घोंसले में पड़ी है, कि सिमटी हुई आवाज़ों को व्यवस्थित करने में थोड़ा वक़्त तो लगता ही है.
दुनिया में धूप का दख़ल बढ़ता जाता है. कोई तो धीमी कर दो चाल इसकी.
कोई स्वतंत्र नहीं नियमों से.
न चाहते हुए भी मन बिस्तर की देहरी से उतरने लगता है. नल ,दरवाज़े, भागती गाड़ियाँ, दफ़्तर और उनकी बेज़ां मस्तियाँ सब धीरे-धीरे जाग रहे होंगें.
कि ज़िंदगी फिर से कमर कस रही है घुलने-मिलने को इनसे...
एक अंगड़ाई, एक मुस्कान, हौले-हौले फुदकती हुई मुंडेर की चिड़ियाँ, गमले का डोलता हुआ फूल काफ़ी तो नहीं पर हाँ तुम्हारी याद के आसपास इनका बने रहना एक सुकून की तस्दीक तो करता ही है...
कि कुछ तो बचा रहता है दुनिया में किसी के बाद ,
कि कुछ तो बचा रहता है दुनिया में तुम्हारी याद के बाद.
बढियाँ..
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