मैंने कहा –
दिल तो पागल है!
उसने सहमति में सिर हिलाया-हाँ!
मैंने आगे कहा – दिल दीवाना है!
इग्नोर करना चाहा उसने इस दफ़ा – हम्म!
मैंने बहकते हुए आगे कहा –
“पहली-पहली बार मिलाता है यही..
सीने में फिर आग जलाता है…”
---हाँ जिसमें जिंदगी जलती जाती है फिर चटकती लकड़ी – सी, खुशियों का धुँआ छोड़ते या ग़मों की राख बिछाते- उसने अपनी हैट उठाई और आगे बढ़ गया।
दिल तो पागल है
दिल दीवाना है… मैंने गाना जारी रखा।
कहानियाँ सिर्फ शब्दों का व्यवसाय नहीं बल्कि एहसासों को कागज़ पर उतारने का भी नाम है..और इस तरह जिंदगी को एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश भी..
शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016
पागल दिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें